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लेखनी प्रतियोगिता -12-Feb-2023 महत्वाकांक्षा

लोग भी अजीब अजीब शौक पालते हैं । कोई गाय , भैंस, बकरी , भेड़ पाल लेता है तो कोई कुत्ता पाल लेता है । कुछ लोग तो गधे भी पाल लेते हैं । कुछ लोगों के शौक इतने खतरनाक होते हैं कि वे "आस्तीन में सांप" तक पाल लेते हैं । रईस लोग घोड़े और हाथी पाल लेते हैं पर हाथी पालने में समस्याएं बहुत हैं इसलिए अब लोगों ने हाथी पालना बंद कर दिया है परन्तु सरकारों ने हाथी पालने शुरू कर दिये हैं और वे हाथी अब "सफेद हाथी" बन गये हैं । कुछ मदारी टाइप के लोग बंदर पाल लिया करते थे और मदारी बनकर बंदर का खेल दिखाया करते थे । इससे उनकी और उस बंदर की रोजी रोटी हो जाया करती थी । 

बाद में कुछ आईआईटियन्स ने नये नये प्रयोग किये । चूंकि वे टॉप क्लास के हैं इसलिए उनके आइडियाज भी टॉप के ही होते हैं । उन्होंने लीक से हटकर सोचा और "गिरगिट" में उन्हें "सत्ता" नजर आई । उन्होंने "गिरगिट" को तुरंत अपना देवता बना लिया और गिरगिट पालना आरंभ कर दिया । वे अब सुबह शाम उस गिरगिट को दण्डवत प्रणाम कर उससे प्रेरणा लेकर दिन भर "रंग" बदलते रहते हैं । 

कुछ लोग तोता भी पालते हैं । आजकल राजनीतिक दलों को "तोता" बहुत अच्छा लगता है इसलिए वे तोता पालने लगे हैं । मालिक के सुर में सुर मिलाने के लिए तोता सबसे अच्छा जीव है । तोता अपने मालिक की पूर्ण वफादारी से सेवा करता है इसलिए सीबीआई और ईडी को भी लोग तोता कहने लग गये हैं । 

हमारे तो पड़ौसी देश इतने महान हैं कि उन्होंने "आतंकवादी" ही पाल लिये । चूंकि वे अपने आपको श्रेष्ठ मानकर चलते हैं इसलिए उन्होंने अपने मजहब से प्रेरित होकर यह नेक काम कर लिया और विश्व में अपने "शौक" के लिए "ख्यातनाम" हो गया । वैसे उसके इस शौक ने उसे दाने दाने को मोहताज अवश्य कर दिया है पर कोई नहीं । उसके हुक्मरान तो कहते आये हैं कि भूखे रह लेंगे लेकिन हजार साल तक जंग लड़ते रहेंगे । शायद उनकी भविष्य वाणी सही हो रही है भूखे मरने वाली । 

कुछ लोगों को पालने को जब कुछ नहीं मिलता है तो वे "मुहब्बत का रोग" पाल लेते हैं । लोग कहते हैं कि हमारे एक चचाजान हुआ करते थे जिन्हें गुलाब के फूल से बेइंतहा मुहब्बत थी, वे किसी अंग्रेजन से मुहब्बत का रोग पाल बैठे । अंग्रेज और अंग्रेजी को हमने शुरू से ही मालिक और मालकिन मान रखा है इसलिए अंग्रेजन से मुहब्बत का रोग पालना कोई छोटा मोटा काम नहीं है । इस कृत्य को "वर्ल्ड वंडर" घोषित कर देना चाहिए । 

अगर कोई मुहब्बत का रोग भी नहीं पाल सके तो उसे "महत्वाकांक्षा" पाल लेनी चाहिए । महत्वाकांक्षा को पालने में न तो कोई कानून आड़े आता है और न ही इसके लिए किसी अंग्रेजन की जरूरत है । जानवर पालने में तो आजकल जोखिम बहुत है क्योंकि जानवरों के पक्ष में बहुत सारे कानून बन चुके हैं इसलिए जानवर पालना अब "टेढ़ी खीर" बन चुका है । मुहब्बत का रोग पालने के लिए कम से कम एक माशूका तो होनी ही चाहिए । महत्वाकांक्षा पालने के लिए किसी भी चीज की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए यह आसानी से पाली जा सकती है । 

कुर्सी की महत्वाकांक्षा क्या क्या नहीं करवा देती है ? कृषि प्रधान और सनातनी परंपरा वाले देश में जहां गाय को माता कहा गया है । गाय की महत्ता को ध्यान में रखकर ग्रांड ओल्ड पार्टी ने अपना चुनाव चिन्ह "गाय बछड़ा" रखा । जब तक गाय "दूध" देती रही तब तक यह चुनाव चिन्ह रहा लेकिन जैसे ही गाय ने दूध देना बंद कर दिया तब पैसे की तंगी होने लगी । पैसे का जुगाड़ करना प्रथमिकता बन गई । तब एक कहावत याद आई "इस हाथ दे, उस हाथ ले" । इस कहावत से प्रेरणा पाकर उस पार्टी ने इस कहावत को अपना "ध्येय वाक्य" बना लिया और सारे काम "ले देकर" किये जाने लगे । लेन देन का कठिन कार्य "हाथ" के बिना कैसे हो सकता था इसलिए अपना चुनाव चिन्ह ही "हाथ" रख लिया । "हाथ" देखकर लोगों ने "तिलक" करना शुरू कर दिया । 

कुर्सी की महत्वाकांक्षा का आलम इतना जबरदस्त था कि जब यह कुर्सी खिसकती हुई दिखाई दी तब तुरंत ही "आपातकाल" घोषित कर दिया गया । इस आपातकाल में पूरे देश को "जेल" बना दिया । जो लोग अंग्रेजों के जमाने में जेल नहीं जा पाये थे और उनकी ख्वाहिश जेल जैसी पवित्र जगह जाने की थी , उसे हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी जी ने घर बैठे ही पूरा कर दिया । घर को ही जेल घोषित कर दिया । अब घर पर ही जेल के आनंद लेते रहो । 

लोग पता नहीं आपातकाल की आलोचना क्यों करते हैं ? आपातकाल ने तो "जनता पार्टी" जैसी एक राजनैतिक पार्टी इस देश को दे दी थी । यदि आपातकाल नहीं लगता तो यकीन मानिए कि "जनता पार्टी" का जन्म भी नहीं होता । आपातकाल ने लोकतंत्र का मतलब तो समझा दिया था अन्यथा "खानदानी" विरासत को ही ढोते रह जाते लोग । आपातकाल की एक और विशेषता यह थी कि इसने "लेफ्ट" और "राइट" को साथ आने पर मजबूर कर दिया था । 

कुर्सी की महत्वाकांक्षा में कोई अपने सबसे पुराने और विश्वस्त साथी को धोखा देकर अपने विरोधी से हाथ मिला रहा है तो कोई पलटीमार बार बार पलटीमार रहा है । कोई गिरगिट की भांति घड़ी घड़ी रंग बदल रहा है तो कोई लालटेन दिखा दिखा कर जंगलराज याद दिला रहा है । महत्वाकांक्षा होनी चाहिए पर ऐसी महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिए जिससे देश आगे बढने के बजाय पीछे चला जाये , बस इतना ध्यान रखना है । 

श्री हरि 
12.2.23 


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12 Comments

Alka jain

14-Feb-2023 12:36 PM

बेहतरीन

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अदिति झा

14-Feb-2023 12:53 AM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

13-Feb-2023 09:16 AM

बेहतरीन प्रस्तुति

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Hari Shanker Goyal "Hari"

13-Feb-2023 10:07 AM

धन्यवाद मैम

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